Ghazipur

“अब्बास अंसारी Out of Assembly: भाषण तो जोशीला था, सज़ा और तेज़ निकल गई!”

मऊ से सुभासपा विधायक अब्बास अंसारी की विधानसभा सदस्यता खत्म, हेट स्पीच केस में दो साल की सज़ा, विधानसभा अध्यक्ष ने सीट को घोषित किया रिक्त।

रिपोर्ट: राहुल पटेल।

लखनऊ। कभी मंच से गरजते थे, अब कोर्ट से गूंज रही है — “दोषी हैं साहब!”
मऊ सदर सीट से सुभासपा के विधायक अब्बास अंसारी की विधायकी अब अतीत बन चुकी है। नफरती भाषण (हेट स्पीच) मामले में मिली दो साल की सजा के बाद यूपी विधानसभा अध्यक्ष सतीश महाना ने रविवार को उनके विधायकी पर फुलस्टॉप लगा दिया।

इतना ही नहीं, रविवार — जो आमतौर पर ‘सरकारी आलस’ के लिए जाना जाता है — उसी दिन विधानसभा सचिवालय खोला गया और अब्बास अंसारी की सीट को आधिकारिक तौर पर रिक्त घोषित कर दिया गया। चुनाव आयोग को भी तुरंत इसकी जानकारी दे दी गई। मतलब अब कहानी की अगली किस्त – “उपचुनाव” – जल्द ही रिलीज़ होने वाली है।

क्या था पूरा मामला?

कहानी साल 2022 की है। विधानसभा चुनावों का माहौल था, अब्बास अंसारी सुभासपा प्रत्याशी थे। उन्होंने मऊ के पहाड़पुर मैदान में एक जनसभा के दौरान कुछ ऐसे बोल कह दिए जो न संविधान को भाए, न आचार संहिता को।

जनसभा में उन्होंने कहा था कि “मऊ प्रशासन से चुनाव बाद हिसाब-किताब किया जाएगा… सबक सिखाया जाएगा।” बस यही ‘सबक’ अब उन्हें अदालत ने पढ़ा दिया है।

मामला शहर कोतवाली में दर्ज हुआ, तहरीर दी एसआई गंगाराम बिंद ने, और आरोपी बनाए गए अब्बास अंसारी व अन्य।
शनिवार को CJM डॉ. केपी सिंह की अदालत ने अब्बास को दो साल की सजा और 11 हज़ार रुपये का जुर्माना ठोंक दिया। साथ में उनके साथी मंसूर अंसारी को भी छह माह की सजा और जुर्माना मिला।

अब आगे क्या?

विधानसभा की मऊ सदर सीट अब रिक्त है और चुनाव आयोग जल्द ही उपचुनाव की तारीख तय कर सकता है।
राजनीतिक पंडितों की नजर इस बात पर है कि अब्बास की गैरमौजूदगी में यह सीट किसके पास जाएगी और क्या सुभासपा फिर से वापसी कर पाएगी या ये विपक्ष के लिए ‘गोल्डन चांस’ है?

थोड़ा कटाक्ष, थोड़ा सवाल…

  • क्या नेताओं के जोशीले भाषण अब उन्हीं के राजनीतिक करियर के लिए खतरा बनते जा रहे हैं?
  • क्या ‘हिसाब-किताब’ का नारा अब जेल का दरवाज़ा बन गया है?
  • और सबसे अहम — क्या जनता अब भाषण नहीं, विवेक चुनेगी?

नेताओं की जुबान जब बेलगाम होती है, तो संविधान उसे चुप कराने के लिए अपने तरीके से जवाब देता है। अब्बास अंसारी की कहानी उसी जवाब का ताज़ा उदाहरण है।
अब ये देखना दिलचस्प होगा कि चुनावी मैदान में अगली बार किसकी आवाज़ गूंजेगी — ‘सबक सिखाओ’ वाली या ‘सबक सीखो’ वाली?

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button