
रिपोर्ट: राहुल पटेल, गाज़ीपुर
गाजीपुर, 24 जून 2025: गाजीपुर में विश्वविद्यालय की स्थापना की वर्षों पुरानी मांग ने एक बार फिर तूल पकड़ लिया है, जब मुख्यमंत्री के जिले में आगमन से ठीक पहले विश्वविद्यालय निर्माण मंच के अध्यक्ष एवं पूर्व छात्रसंघ उपाध्यक्ष दीपक उपाध्याय को ‘हाउस अरेस्ट’ कर लिया गया। इस कार्रवाई ने छात्र समुदाय में गहरा असंतोष और आक्रोश पैदा कर दिया है।
लोकतांत्रिक आवाज को दबाने की कोशिश: उपाध्याय
दीपक उपाध्याय, जो गाजीपुर में एक विश्वविद्यालय की मांग को लेकर लंबे समय से सक्रिय हैं, ने अपनी नजरबंदी पर तीखी प्रतिक्रिया दी। उन्होंने कहा,
“मुख्यमंत्री जी के आगमन से ठीक पहले मुझे घर में नजरबंद करना न केवल दुर्भाग्यपूर्ण है, बल्कि यह तानाशाही का प्रतीक है। यह सीधे-सीधे जनहित के मुद्दों को दबाने का प्रयास है।”
उन्होंने आगे कहा,
“गाजीपुर में 364 से अधिक महाविद्यालय हैं, लेकिन आज तक यहां एक भी विश्वविद्यालय नहीं है। यह राज्य सरकार की ‘एक जनपद एक विश्वविद्यालय’ योजना का स्पष्ट उल्लंघन है। क्या गाजीपुर के छात्र इस योजना के हकदार नहीं हैं?”
जनप्रतिनिधियों से भावुक अपील
श्री उपाध्याय ने जिले के जनप्रतिनिधियों से भी भावुक अपील की। उन्होंने कहा,
“यदि हम अपराधी हैं, तो आप जो मुख्यमंत्री जी के साथ बैठक में हैं, कृपया कम से कम इस मुद्दे को उनके सामने रखें। गाजीपुर का यह सबसे बड़ा जनहित का मुद्दा है।”
उन्होंने दोहराया कि यह मांग किसी राजनीतिक लाभ के लिए नहीं, बल्कि छात्रों के भविष्य के लिए की जा रही है।
छात्र समुदाय और मंच का विरोध प्रदर्शन
विश्वविद्यालय निर्माण मंच और जिले के विभिन्न छात्र संगठनों ने इस कार्रवाई की कड़ी निंदा की है। छात्रों का कहना है कि यह ‘अलोकतांत्रिक और असंवैधानिक’ है, और यह दिखाता है कि सरकार जनहित की आवाजों से डरती है।
छात्रों ने कहा कि जब तक गाजीपुर को उसका अपना विश्वविद्यालय नहीं मिलेगा, तब तक यह आंदोलन जारी रहेगा।
मुख्यमंत्री से की गई अपील
विश्वविद्यालय निर्माण मंच ने मुख्यमंत्री से आग्रह किया है कि वे इस मुद्दे का संज्ञान लें और गाजीपुर में विश्वविद्यालय की स्थापना की तत्काल घोषणा करें। उन्होंने चेताया कि अगर यह मांग अनसुनी रही, तो जनांदोलन और तेज़ किया जाएगा।
गाजीपुर में विश्वविद्यालय की मांग केवल एक शैक्षणिक आवश्यकता नहीं, बल्कि युवाओं के भविष्य और उनके अधिकार की लड़ाई बन चुकी है। दीपक उपाध्याय की नजरबंदी से उपजे हालात राज्य सरकार के लोकतांत्रिक चरित्र पर सवाल खड़े करते हैं। अब देखना यह है कि मुख्यमंत्री इस मांग को लेकर क्या रुख अपनाते हैं? समाधान की ओर बढ़ते हैं या दमन की राह पर चलते हैं।