तथाकथित दरोगा ने पत्रकार से की गाली-गलौज व दी मारने की धमकी, 19 दिन बीत जाने के बाद भी पुलिस ने नहीं की कोई कार्यवाही

आरिफ अंसारी

~ तथाकथित दरोगा ने पत्रकार से की गाली-गलौज व दी मारने की धमकी

~ 19 दिन बीत जाने के बाद भी पुलिस ने नही की कोई कार्यवाही

~ पत्रकार के तहरीर पर ही नहीं दर्ज हुआ मुकदमा, तो आम जनता का क्या होता होगा

~ पुलिस आयुक्त कार्यालय से फॉरवर्ड किये गए तहरीर की थाना प्रभारी चौबेपुर को नहीं है कोई जानकारी

~वाराणसी पुलिस के नाम पर धमकी देने वाले फर्जी दरोगा पर क्यों है मेहरबान चौबेपुर पुलिस ?

~पुलिस के नाम का इस्तेमाल करने वाला फर्जी दरोगा क्यों है पुलिस के पकड़ के बाहर ?

 

 

वाराणसी (चौबेपुर)। लगभग 19 दिन पूर्व 6 अप्रैल को पत्रकार विशाल कुमार को एक तथाकथित दरोगा ने फोन ऑयर गाली-गलौज करते हुए मारने की धमकी देने लगा। उसने अपना नाम शिवपाल यादव बताया, और खुद को थाना लालपुर-पांडेयपुर थानांतर्गत पांडेयपुर चौकी में तैनात बताते हुए पत्रकार को चौकी पर मिलने के लिए बुलाने लगा। और भद्दी-भद्दी गलिबदेते हुए मारने की धमकी भी देने लगा। इसकी सूचना पत्रकार ने संगठन को दी तो इसकी पुष्टि करने के किये पत्रकार नीरज सिंह ने उस तथाकथित दरोगा को फ़ोन किया तो उसने भी खुद को पाण्डेयपुर में तैनात दरोगा बताते हुए देख चौकी पर मिलने के लिए बुलाया। जानकारी करने पर यह मालूम हुआ कि इस नाम का कोई दरोगा उस थाने पर मौजूद ही नही है।

इस पूरे मामले की लिखित तहरीर संयुक्त पुलिस आयुक्त को दिया गया, जिसपर थाने से किसी दुर्गेश मिश्रा ने पत्रकार विशाल से फ़ोन पर जानकारी ली, लेकिन मुकदमा आज तक नही लिखा जा सका।

दरोगा दुर्गेश इस मामले में दूसरे पक्ष से ज्यादा ही प्रभावित मालूम पड़ रहे हैं, क्योंकि बार-बार यह कर रहे हैं कि तथाकथित दरोगा को बुलाया गया है, इसमे तो 504 का ही मुकदमा दर्ज होगा, इससे क्या होगा। उसको बुलाकर माफी मंगवा दे रहा हूँ इत्यादि।

एक ऐसे मामले में जिसमे एक व्यक्ति फर्जी दरोगा बन कर पत्रकार को डरा धमका रहा है, पुलिस का नाम खराब कर रहा है लेकिन स्तहनिय पुलिस पता नहीं क्यों मौन है। ये तो मामला पत्रकार का था जिसने लिखित शिकायत की वरना ऐसे मामले में लोग शिकायत भी नहीं करते।

थानों की इसी रवैये को देखते हुए पत्रकार ने इसकी शिकायत पुलिस आयुक्त से की, लेकिन ऐसा लगता है कि थाने पर मौजूद प्रभारी पुलिस आयुक्त को भी गंभीरता से नही लेते।

अब देखना यह होगा कि पीड़ित पत्रकार को न्याय कब मिलता है या पुलिस मामले को यूं ही ठंढे बस्ते मे डाल देगी। इस संबंध मे देखते हैं की पुलिस कार्यवाही करती भी है या नही।

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