Varanasi

“पेड़ काटे, पानी सुखाया… अब गर्मी ने सबक सिखाया”

इस बार की गर्मी ने सारे पुराने रिकॉर्ड तोड़ दिए हैं

मार्च के खत्म होते-होते ही सूरज जैसे आग बरसाने लगा, और अप्रैल आते-आते तो हालत यह हो गई कि घर से बाहर कदम रखते ही जैसे तंदूर में घुस गए हों।

शहरों में AC और कूलर भी पसीना छोड़ रहे हैं, और गाँवों में लोग छांव की तलाश में भटक रहे हैं।

दिन चढ़ते ही गलियां सूनी हो जाती हैं, बाज़ार सुनसान पड़ जाते हैं, और लोग सिर पर गीला कपड़ा रखे पानी की बोतल लेकर चलते नजर आते हैं। बिजली का भी कोई भरोसा नहीं — कभी है, कभी आंख मटका के चली जाती है।

आखिर ये हाल क्यों?

साफ है — जो बीज हमने बोए हैं, अब वही फल मिल रहे हैं।

पेड़ काटते रहे, ज़मीन का पानी खींचते रहे, नदियाँ गंदा करते रहे… और अब जलवायु का गुस्सा झेल रहे हैं।

गर्मी का बढ़ना अब सिर्फ मौसम का खेल नहीं रहा, ये इंसानी लापरवाही का नतीजा है।

गर्मी का कहर किस-किस पर?

बच्चे और बुजुर्ग: हीट स्ट्रोक, डिहाइड्रेशन और थकान के सबसे ज्यादा शिकार।

किसान और फसलें: खेतों में खड़ी फसलें सूख रही हैं, और पानी के लिए जद्दोजहद बढ़ गई है।

बिजली और पानी: AC, कूलर, मोटर सब खिंचते जा रहे हैं, और बिजली-पानी दोनों का टोटा पड़ता जा रहा है।

जानवर और पक्षी: धूप में भटकते हैं, कहीं एक बूंद पानी के लिए।

 तो अब क्या करें?

पानी से दोस्ती करो: दिन में बार-बार पानी पियो, नींबू पानी, ORS घोल,छाछ जैसी चीजें साथ रखो।

छांव ढूंढो या बनाओ: हल्के, सूती कपड़े पहनो और सिर को ढककर बाहर निकलो।

पेड़ लगाओ: जितना हो सके, घर, मोहल्ले या स्कूल में पेड़ लगाओ।

जानवरों के लिए भी सोचो:अपने घर के बाहर एक कटोरी पानी रख दो।

बेमतलब बाहर मत घूमो: धूप के टाइम बिना जरूरत के बाहर निकलना बहादुरी नहीं, बेवकूफी है।

आखिरी अल्फाज़

गर्मी बढ़ेगी या घटेगी, ये अब हमारे हाथ में है।

आज अगर हम पानी और पेड़ बचाएंगे, तो कल चैन की सांस ले पाएंगे। वरना वो दिन दूर नहीं जब गर्मी हमें जीने नहीं देगी और AC भी हांफने लगेंगे।

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