पेशबंदी के तहत एससी-एसटी एक्ट के झूठे मुकदमे में मिली जमानत, झूठे आरोप साबित करने की कोशिश नाकाम
गुलाम सरवर 'इमरान'
वाराणसी: वर्तमान समय में एससी-एसटी एक्ट का दुरुपयोग कर झूठे मुकदमे दर्ज कराने के मामले बढ़ते जा रहे हैं। ऐसे ही एक मामले में वाराणसी के बेनियाबाग थाना क्षेत्र के निवासी आमिर अहमद ने बताया कि उनके और मो. जावेद उर्फ बेनी पर एससी-एसटी एक्ट के तहत झूठे आरोप लगाकर दबाव बनाने की कोशिश की गई। हालांकि, न्यायालय ने साक्ष्यों के अभाव में दोनों आरोपियों को 25-25 हजार रुपये की जमानत और बंधपत्र देने के आदेश पर रिहा कर दिया।
यह आदेश विशेष न्यायाधीश (एससी-एसटी एक्ट) देवकांत शुक्ला की अदालत ने दिया। अदालत में बचाव पक्ष की ओर से अधिवक्ता अनिल कुमार सिंह, मो. मोहिउद्दीन खान और मो. फैजुद्दीन खान ने प्रभावी पैरवी की।
अभियोजन पक्ष के अनुसार, वादिनी उर्मिला देवी ने कोर्ट में धारा 156 (3) के तहत प्राथमिकी दर्ज कराई थी। उनका आरोप था कि उनके ससुर की मृत्यु के बाद उनके छोटे ससुर कन्हैयालाल ने बिल्डर आमिर अहमद और जावेद उर्फ बेनी से मिलकर उनके मकान और जमीन को हड़पने की साजिश रची।
वादि मुकदमा ने लगाया आरोप लगाते हुए बताया था कि कन्हैयालाल और अन्य ने डेवलपर्स एग्रीमेंट में धोखाधड़ी कर वादिनी के पति से बिना पैसा दिए हस्ताक्षर करवा लिए। विरोध करने पर 20 फरवरी 2021 को दोपहर दो बजे, वादिनी के पति सदन को आरोपियों ने जातिसूचक शब्दों का प्रयोग करते हुए उनके घर से जबरन उठाया और बेनियाबाग स्थित ऑफिस ले जाकर मारपीट की। आरोपियों ने धमकी दी कि यदि मकान नहीं दिया तो जान से मार देंगे।
जब थाने में शिकायत की तो मौके पर पूछताछ में मामला पेशबंदी का लगा जिस पर कार्रवाई नहीं हुई, तो वादिनी ने न्यायालय की शरण ली।
अदालत में बचाव पक्ष के अधिवक्ताओं ने अपने मुवक्किलों के पक्ष में साक्ष्य प्रस्तुत किए। अधिवक्ताओं ने यह साबित करने की कोशिश की कि आरोप झूठे और मनगढ़ंत हैं, जिनका उद्देश्य केवल दबाव बनाना था।
अभियोजन पक्ष की ओर से दिए गए साक्ष्य अपर्याप्त पाए गए। इसके बाद न्यायालय ने सभी अभियुक्तों को 25-25 हजार रुपये की जमानत और बंधपत्र पर रिहा करने का आदेश दिया।
यह मामला यह दर्शाता है कि एससी-एसटी एक्ट जैसे गंभीर कानून का दुरुपयोग करके पेशबंदी करने की प्रवृत्ति बढ़ रही है। अदालत के इस फैसले से यह संदेश जाता है कि झूठे आरोपों के माध्यम से दबाव बनाने की कोशिश न केवल विफल होगी, बल्कि सत्य की जीत होगी।
न्यायालय के इस फैसले ने न केवल निर्दोष व्यक्तियों को न्याय दिलाया, बल्कि यह भी स्पष्ट किया कि कानून का दुरुपयोग करने वाले लोग भी बच नहीं सकते।