मनरेगा कार्य में जेसीबी से काम, नियमों की उड़ रही धज्जियाँ!
चिरईगांव ब्लॉक के चुकंहा ग्राम सभा में मनरेगा अधिनियम 2005 की खुलेआम उड़ रही धज्जियाँ, ग्रामीणों ने जताया विरोध, जांच की मांग

ख़बर: विशाल कुमार
वाराणसी, चिरईगांव: वाराणसी जनपद के चिरईगांव विकास खंड की ग्राम सभा चुकंहा में मनरेगा (महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम) के तहत कराए जा रहे कार्यों में गंभीर अनियमितताएं उजागर हुई हैं। ग्रामीणों का आरोप है कि जहां हाथ से श्रमिकों द्वारा कार्य होना चाहिए, वहां धड़ल्ले से जेसीबी मशीनों का प्रयोग किया जा रहा है।
ग्रामीणों ने बताया कि सरकार की इस महत्वाकांक्षी योजना का मुख्य उद्देश्य स्थानीय लोगों को रोज़गार देना है, लेकिन ग्राम सभा में मजदूरों की जगह मशीनें काम कर रही हैं। इससे न सिर्फ योजना की मूल भावना का उल्लंघन हो रहा है, बल्कि दर्जनों गरीब परिवारों का रोज़गार भी छिन रहा है।
कानून के खिलाफ है मशीनों का प्रयोग
मनरेगा अधिनियम 2005 की धारा 6 और 10 में स्पष्ट उल्लेख है कि कार्य हाथ से कराया जाना अनिवार्य है, मशीनों का इस्तेमाल केवल उन्हीं कार्यों में हो सकता है जहां यह अत्यंत आवश्यक हो। लेकिन चुकंहा में नालियों की सफाई, मिट्टी ढुलाई, समतलीकरण जैसे कामों में भी जेसीबी का इस्तेमाल किया जा रहा है, जो अधिनियम के स्पष्ट उल्लंघन की श्रेणी में आता है।
ग्रामीणों का आक्रोश, मांग उठी जांच की
स्थानीय ग्रामीणों ने इस अवैध गतिविधि के खिलाफ आवाज़ उठाई है। उन्होंने प्रशासन और संबंधित जनप्रतिनिधियों से मांग की है कि इस पूरे मामले की निष्पक्ष जांच कराई जाए और दोषी अधिकारियों एवं ठेकेदारों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाए।
“मनरेगा की भावना के साथ विश्वासघात”
एक स्थानीय ग्रामीण रामनाथ यादव ने बताया, “हमें उम्मीद थी कि इस योजना से हमारे गांव के बेरोजगारों को काम मिलेगा, लेकिन यहां तो मशीनें आ गई हैं और मज़दूर खाली बैठे हैं। यह सीधे-सीधे गरीबों के हक़ पर डाका है।”
बड़ा सवाल – आखिर गरीबों को रोजगार कब मिलेगा?
यह मामला केवल चुकंहा ग्राम सभा तक सीमित नहीं है, बल्कि यह पूरे सिस्टम पर एक सवाल खड़ा करता है कि क्या सरकार की योजनाओं का लाभ वास्तव में ज़रूरतमंदों तक पहुंच रहा है? जब नियमों को ताक पर रखकर मनमानी की जाएगी, तो फिर गरीब मजदूरों के लिए रोज़गार की गारंटी कैसे सुनिश्चित हो पाएगी?
प्रशासन मौन, जवाबदेही तय होनी चाहिए
अब देखना यह है कि संबंधित विभाग और जिला प्रशासन इस शिकायत पर क्या कार्रवाई करता है। यदि मामले को अनदेखा किया गया तो यह न केवल कानून का अपमान होगा, बल्कि ग्रामीणों के साथ अन्याय भी।