विष मुक्त खेती की आवश्यकता, संभावनाएं और चुनौतियां: एक दिवसीय संगोष्ठी का आयोजन

मो० आरिफ़ अंसारी

 

  • विषमुक्त खेती की आवश्यकता पर संगोष्ठी का आयोजन

  • स्वास्थ्य और पर्यावरण के लिए जरूरी है विषमुक्त खेती

  • खेती में रासायनिक उर्वरक और कीटनाशक का प्रयोग घातक

 

वाराणसी। कृषि उत्पादों को विषमुक्त बनाने की जरूरत और उसके लिए अपनाए जाने वाली तकनीकों के प्रचार प्रसार पर चर्चा के लिए क्षेत्र के भंदहा कला ग्राम में एक दिवसीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया। सामाजिक संस्था आशा ट्रस्ट के परिसर में आयोजित ‘विष मुक्त खेती आवश्यकता, संभावनाएं एवं चुनौतियां’ विषयक इस संगोष्ठी में कृषि में बढ़ते रसायनों के उपयोग पर चिंता व्यक्त की गई, साथ ही विष मुक्त और प्राकृतिक पद्धतियों को अपनाने की आवश्यकता पर जोर दिया गया।

गोष्ठी में पूर्वांचल के कई जिलों के प्रगतिशील किसानों, लोक भारती के प्रतिनिधियों और वैज्ञानिकों ने अपने विचार साझा किए। लोक भारती संगठन के प्रांत समन्वयक डॉ. आर आर सिंह ने कहा कि कृषि आय में सम्मानजनक वृद्धि लाने और किसानों की खुशहाली के लिए परंपरागत खेती की बजाय नई पद्धतियों को अपनाना होगा। उन्होंने बताया कि रासायनिक उर्वरकों के बढ़ते उपयोग से कृषि लागत बढ़ रही है और खेतों की उर्वरता पर प्रतिकूल असर पड़ रहा है। ऐसे में किसानों को शून्य लागत प्राकृतिक खेती की पद्धतियों को अपनाना चाहिए, ताकि विष मुक्त खाद्य समाज उपलब्ध कराया जा सके।

वक्ताओं ने किसानों को कृषि के साथ पशुपालन, मधुमक्खी पालन, बागवानी, औषधीय पौधों की खेती और मुर्गी पालन जैसे कृषि आधारित उद्यमों को अपनाने का भी सुझाव दिया। साथ ही, पर्यावरण के प्रति सचेत रहते हुए खाली भूमि में वृक्षारोपण को बढ़ावा देने की बात कही गई।

गोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए विजय बहादुर सिंह ने कहा कि खेती किसानी के उत्थान से ही देश का भला होगा। उन्होंने किसानों से सरकारी योजनाओं पर निर्भरता छोड़कर अपने कर्म कौशल से कृषि में लागत न्यूनतम और उत्पादन अधिकतम स्तर तक पहुंचाने की बात की। इसके लिए विष मुक्त प्राकृतिक खेती पद्धतियों को अपनाना जरूरी है।

गोष्ठी में आशा ट्रस्ट के समन्वयक वल्लभाचार्य पांडेय ने बताया कि ट्रस्ट द्वारा जन कल्याण और जागरूकता के विभिन्न कार्यक्रम संचालित किए जा रहे हैं। उन्होंने कहा कि खेती किसानी की उपेक्षा करके राष्ट्र कभी आगे नहीं बढ़ सकता, और अन्नदाता को समय के साथ अपनी खेती पद्धतियों को बदलते हुए नई तकनीकों के साथ कृषि को उत्कृष्ट स्तर तक पहुंचाना होगा।

संगोष्ठी में श्री कृष्ण चौधरी, आशीष कुमार सिंह, शैलेन्द्र रघुवंशी, हरिशंकर किसान, राम बदन दुबे, रणविजय, सूर्य मणि मिश्र, उदित नारायण शुक्ल, देवनारायण यादव, हरेन्द्र सिंह, फौजदार यादव, शैलेश बरनवाल, पुष्पेंद्र श्रीवास्तव, रणवीर पांडेय, दीप मणि मिश्र आदि ने अपने विचार व्यक्त किए। व्यवस्था में प्रदीप सिंह, दीन दयाल सिंह, सरोज देवी, सुनीता यादव, लकी चौबे, संजना, निक्की, पूजा, वंदना आदि का विशेष योगदान रहा।

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