सरकारी विद्यालयों की बंदी और मर्जर के विरोध में ‘साझा संस्कृति मंच’ ने सौंपा ज्ञापन
शिक्षा बचाओ - स्कूल बचाओ मुहिम को नया आयाम, मुख्यमंत्री को भेजा विरोध-पत्र

आरिफ़ अंसारी, ख़बर भारत
वाराणसी, 31 जुलाई 2025। सरकारी विद्यालयों को मर्ज (pair) करने और बंद करने की नीति के खिलाफ जनपक्षीय संगठनों का विरोध तेज होता जा रहा है। इसी क्रम में आज ‘साझा संस्कृति मंच – जनांदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय (NAPM)’ ने वाराणसी में एक ज्ञापन के माध्यम से मुख्यमंत्री उत्तर प्रदेश को गंभीर आपत्ति दर्ज कराई है। ज्ञापन बेसिक शिक्षा अधिकारी, वाराणसी के माध्यम से प्रेषित किया गया।
ज्ञापन का संदर्भ और मुख्य बिंदु:
ज्ञापन में कहा गया है कि केंद्र सरकार द्वारा हाल ही में संसद में प्रस्तुत आंकड़ों के अनुसार, पिछले 10 वर्षों में देशभर में 89,441 स्कूल बंद किए जा चुके हैं, जिनमें अकेले उत्तर प्रदेश के लगभग 25,000 विद्यालय शामिल हैं। अब राज्य सरकार द्वारा एक और नया निर्णय लेते हुए 5,000 परिषदीय विद्यालयों को मर्ज करने की योजना लाई गई है, जिससे लगभग 27,000 विद्यालयों पर प्रतिकूल असर पड़ेगा।
इस निर्णय के चलते:
- 1,35,000 सहायक शिक्षकों की तैनाती प्रभावित होगी।
- 27,000 प्रधानाध्यापकों की जिम्मेदारी/पदधारणा अस्थिर होगी।
- शिक्षामित्रों, रसोइयों, आंगनबाड़ी कर्मियों और अन्य सहायक कर्मचारियों की आजीविका खतरे में पड़ेगी।
- विद्यालयों की दूरी बढ़ने से गरीब और वंचित समुदाय के कई बच्चे स्कूल जाना छोड़ सकते हैं, जिससे बालश्रम और ड्रॉपआउट रेट बढ़ने की आशंका है।
- मिड-डे मील योजनाओं में कटौती और विलंब से बच्चों के पोषण स्तर पर भी गहरा प्रभाव पड़ेगा।
ज्ञापन में उठाई गई प्रमुख माँगें:
- परिषदीय विद्यालयों की बंदी एवं पेयरिंग की प्रक्रिया को तत्काल प्रभाव से रोका जाए।
- राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 के अनुसार शिक्षा पर GDP का कम से कम 6% खर्च सुनिश्चित किया जाए।
- सरकारी विद्यालयों में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा हेतु निःशुल्क पाठ्यपुस्तकें, बैग, वर्दी, छात्रवृत्ति आदि समय से उपलब्ध कराई जाएं।
- मिड-डे मील योजना को पोषण, मात्रा एवं गुणवत्ता की दृष्टि से सुदृढ़ और पारदर्शी बनाया जाए।
- शिक्षकों, शिक्षामित्रों, रसोइयों एवं सहायक कर्मचारियों की नौकरी स्थायी की जाए, और भर्ती प्रक्रिया निष्पक्ष और पारदर्शी हो।
- विद्यालयों में आधुनिक, वैज्ञानिक, समावेशी एवं लोकतांत्रिक सोच आधारित शिक्षा को बढ़ावा दिया जाए।
- प्रत्येक विद्यालय की जवाबदेही तय की जाए और नियमित सामाजिक ऑडिट की व्यवस्था लागू की जाए।
शिक्षा के निजीकरण और केंद्रीकरण पर भी उठे सवाल
ज्ञापन में इस बात की भी चिंता जताई गई कि सरकारी विद्यालयों की बंदी और विलय की नीतियां शिक्षा के निजीकरण और केंद्रीकरण की दिशा में बढ़ रही हैं, जो गरीब, दलित, आदिवासी, अल्पसंख्यक, महिलाओं और ग्रामीण समुदायों के शिक्षा के अधिकार को सीधे-सीधे प्रभावित करती हैं।
साझा संस्कृति मंच ने यह भी रेखांकित किया कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति को लागू करने के नाम पर सरकार संस्थागत विविधता समाप्त कर रही है और स्कूलों को न्यूनतम संसाधन, न्यूनतम शिक्षक और अधिक प्रशासनिक नियंत्रण में धकेल रही है।
“शिक्षा पर हमला, नहीं सहेगा देश का बच्चा”
ज्ञापन में दोहराया गया कि यदि प्रदेश में शिक्षा पर संकट की इस स्थिति पर तत्काल रोक नहीं लगाई गई तो साझा संस्कृति मंच और उससे जुड़े संगठन राज्यव्यापी विरोध आंदोलन छेड़ने को बाध्य होंगे।
संपर्क में आए अन्य संगठन:
ज्ञापन सौंपने की प्रक्रिया में ‘राष्ट्र सेविका मंच, आदिवासी शिक्षा चेतना मंच, रसोइया संघ, शिक्षामित्र संघर्ष मोर्चा और कई स्थानीय नागरिक संगठन एवं अभिभावक समूह भी जुड़े हुए हैं।
संभावित असर और चेतावनी:
- यदि सरकार ने स्थिति को गंभीरता से नहीं लिया तो अगस्त माह से जनांदोलनों का समन्वय राष्ट्रव्यापी शिक्षा अधिकार यात्रा निकाल सकता है।
- जनहित याचिका (PIL) दायर करने की भी तैयारी चल रही है।
- विद्यार्थियों एवं अभिभावकों के साथ व्यापक स्तर पर संवाद एवं हस्ताक्षर अभियान भी शुरू होंगे।
साझा संस्कृति मंच द्वारा प्रस्तुत यह ज्ञापन उत्तर प्रदेश में शिक्षा प्रणाली के गंभीर ढांचेगत संकट को रेखांकित करता है। यह केवल विद्यालयों की गिनती नहीं, बल्कि गौरवशाली जनशिक्षा प्रणाली की गरिमा और भविष्य की पीढ़ियों के हक की लड़ाई है। अब देखना यह है कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की सरकार इस पर कितनी तत्परता और संवेदनशीलता से प्रतिक्रिया देती है।