वाराणसी: मोहम्मद रफी की 100वीं वर्षगांठ पर आयोजित हुआ ‘रफी द सिंगिंग रेनबो’ सांस्कृतिक कार्यक्रम
वीरेंद्र पटेल, वाराणसी
वाराणसी, 24 दिसंबर। प्रसिद्ध पार्श्व गायक मोहम्मद रफी की सौवीं वर्षगांठ के उपलक्ष्य में मंगलवार को वाराणसी के क्लब स्पिरिचुअल बाय अक् में एक भव्य सांस्कृतिक कार्यक्रम ‘रफी द सिंगिंग रेनबो’ का आयोजन किया गया। यह आयोजन ओमा’ज कॉस्मॉस फॉर अक् रिविलेशन और हम भारत है ट्रस्ट के संयुक्त तत्वावधान में हुआ। कार्यक्रम में शहर के कई गणमान्य व्यक्ति, संगीत प्रेमी, और रफी साहब के प्रशंसक शामिल हुए।
कार्यक्रम की शुरुआत स्वामी ओमा द अक् के व्याख्यान से हुई, जिसमें उन्होंने मोहम्मद रफी के जीवन, कला और उनके संगीत की अमिट धरोहर पर विस्तार से प्रकाश डाला। स्वामी जी ने रफी साहब के गीतों की बहुआयामी प्रस्तुति और उनकी आवाज़ की गहराई को भारतीय संगीत की धरोहर बताया।
स्वामी ओमा द अक् में कहा, “रफी साहब सिर्फ एक गायक नहीं, बल्कि संगीत और कला के एक अमूल्य रत्न थे। उनका संगीत भारतीय संस्कृति का अभिन्न हिस्सा बन चुका है। रफी साहब पार्श्व गायन के सभी विधाओं के सर्वोत्तम कलाकार रहे हैं। पिछले सौ वर्षों में उनके जैसा गायक नहीं हुआ। उनकी आवाज़ को ईश्वर की आवाज़ के रूप में माना जा सकता है।”
कार्यक्रम में रफी साहब के लोकप्रिय गीतों की प्रस्तुतियाँ दी गईं, जिनमें उनके गीतों की विविधता और भावनाओं की गहराई को संगीतकारों और गायकों ने बेहतरीन तरीके से पेश किया। कार्यक्रम में रफी साहब के गायन के अनगिनत रंगों को दर्शाने के लिए उनके भिन्न-भिन्न गानों की प्रस्तुति दी गई, जिसमें रोमांटिक, दर्द भरे, और देशभक्ति के गीत शामिल थे। विशेष रूप से उनके कुछ प्रसिद्ध गीतों, जैसे ‘कभी कभी ऐ सचिन’, ‘तेरा मुझसे है पहले का नाता कोई’, और ‘दिल के साथ दिल मिलाने वाला’ को सांगीतिक प्रस्तुतियों में ढाला गया।
इस कार्यक्रम में वाराणसी के कई प्रसिद्ध संगीतज्ञ और गायकों ने भी अपने विचार व्यक्त किए और रफी साहब की गायकी की सराहना की। एक संगीत प्रेमी ने कहा, “मोहम्मद रफी की आवाज़ ऐसी थी, जो हर दिल को छू जाती थी। वह अपनी गायकी में ऐसा जादू रखते थे कि किसी भी गीत को सुनते ही वह मन में बस जाता था।”
कार्यक्रम का आयोजन मोहम्मद रफी के जीवन और उनके योगदान को समर्पित था। आयोजकों ने इस अवसर पर रफी साहब की संगीत से संबंधित अनेक महत्वपूर्ण पहलुओं पर चर्चा की और उनकी गायकी को आने वाली पीढ़ियों तक पहुंचाने के लिए निरंतर प्रयास करने का संकल्प लिया।
कार्यक्रम में उपस्थित वकील स्वामी जी ने कहा, “रफी साहब का संगीत भारतीय समाज की विविधता और उनकी संस्कृतियों का अभिव्यक्तिकरण था। उनके गीतों में हर तरह की भावनाओं का बखूबी समावेश था, चाहे वह प्रेम हो, देशभक्ति हो, या फिर दुख-संवेदनाएँ।”
कार्यक्रम का समापन रफी साहब के एक विशेष गीत ‘आसुंओं की महक से’ की प्रस्तुति से हुआ, जिसे उपस्थित सभी दर्शकों ने बड़े ही आदर और श्रद्धा के साथ सुना। इस कार्यक्रम ने न केवल रफी साहब की यादों को ताजा किया, बल्कि उनके संगीत की स्थायी विरासत को सम्मानित करने का एक अनूठा प्रयास भी किया।
संगीत प्रेमियों और रफी साहब के फैंस के लिए यह कार्यक्रम एक अविस्मरणीय अनुभव रहा, और सभी ने इसे बड़ी श्रद्धा और सम्मान के साथ मनाया।