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“पेमेंट भी किया… फिर भी सड़क पर रोक ली बाइक! बोले – ‘CO की भी गाड़ी उठा लेते हैं’ – कौन हैं ये दबंग सीज़र?”

रिकवरी एजेंटों की गुंडागर्दी! फिल्मी स्टाइल में बाइक रोककर छीन ली बाइक, पेमेंट क्लियर होने के बावजूद धमकी

नीरज सिंह, वाराणसी

 

~ आफिस से पेमेंट क्लियर होने की पुष्टि के बाद ही छोड़ी बाइक

~ वाराणसी में फाइनेंस कंपनियों के नाम पर चल रही खुलेआम दबंगई, सवालों के घेरे में पुलिस और कानून व्यवस्था

~ सड़क पर ओवरटेक कर युवक की बाइक छीनी, किश्त जमा होने के बावजूद धमकाया

~ “CO की भी गाड़ी उठा लेते हैं, कोई कुछ नहीं कर सकता” – खुद को बताया दबंग

~ 7 जनवरी 2024 को ऐसे ही सीजर की गोली मारकर हो चुकी है हत्या

~ वाराणसी पुलिस कब लेगी इन ‘मनबढ़ एजेंटों’ पर सख्त एक्शन?

 

वाराणसी। शहर में फाइनेंस कंपनियों के रिकवरी एजेंट अब कानून को ताक पर रखकर सड़क पर खुलेआम गुंडागर्दी कर रहे हैं। ताजा मामला शिवपुर थाना क्षेत्र के बेलवारिया इलाके का है, जहां कैफ नामक युवक अपनी बहन को सिएट कॉलेज से लेने जा रहा था। तभी तीन अज्ञात लोग पल्सर बाइक (नं. UP62 CE 1013) से आए और फिल्मी स्टाइल में ओवरटेक कर उसकी बाइक रोक ली।

इन तथाकथित सीज़र एजेंटों में से एक, जिसने खुद को शिवम सिंह बताया, ने कैफ से कहा कि उसकी किश्त बाकी है, इसलिए बाइक जब्त की जाएगी। जब कैफ ने विरोध करते हुए पुलिस बुलाने की बात कही तो दबंगई से जवाब मिला – “गाड़ी चाहे थानेदार की हो या CO की, सबकी जब्त करते हैं, हमें कोई रोक नहीं सकता।”

पीड़ित कैफ ने जब फाइनेंस ऑफिस में जानकारी ली तो सामने आया कि बाइक की किश्त पहले ही जमा की जा चुकी थी। इसके बाद एजेंटों ने बाइक वापस छोड़ी, लेकिन सवाल यह उठता है – क्या सरेआम ऐसी गुंडागर्दी जायज़ है?

फाइनेंस कंपनियों की आड़ में ऐसे एजेंट आम लोगों में डर और दबाव का माहौल बना रहे हैं। सड़क पर गाड़ी रोकना, बदसलूकी करना और जबरन जब्ती करना पूरी तरह अवैध है।

7 जनवरी 2024 को ऐसी ही दबंगई का खौफनाक अंजाम सामने आया था,
जब बड़ागांव क्षेत्र में फाइनेंस कंपनी के सीजर वीर बहादुर सिंह को एक कार सवार ने बदमाश समझ गोली मार दी थी, जिससे उसकी मौके पर मौत हो गई थी। उस घटना ने पूरे सिस्टम पर सवाल खड़े किए थे, लेकिन आज भी हालात जस के तस हैं।

अब सवाल यह है – आखिर कब जागेगी वाराणसी पुलिस? और कब होगी इन तथाकथित एजेंटों पर सख्त कार्रवाई?
कर्ज वसूली के लिए कानून है, नियम हैं, कोर्ट है – तो फिर ये सड़क पर ‘सुपरमैन’ क्यों बने फिर रहे हैं?

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